ज़ोमाटो का जलवा या एक और डाटकाम बूम?

क्या शेयर बाज़ार में बुलबुला बन रहा है? पिछले साल भर में मुंबई शेयर बाज़ार का संवेदी सूचकांक 90 फीसदी से ज्यादा चढ़ चुका है. लगभग 53000 अंकों तक पहुँच गए बाज़ार में पार्टी का माहौल है और इसमें ज़ोमाटो के लजीज शेयरों के लिए मारामारी मची हुई है. लेकिन दूसरी ओर, देश में कोरोना की दूसरी लहर की मार से थर्राए लोग तीसरी लहर की आशंकाओं से सहमे हुए हैं. वास्तविक अर्थव्यवस्था की हालत पहले से ही खस्ता थी. महामारी, लाकडाउन और अनिश्चितताओं के बीच फंसी अर्थव्यवस्था की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. फिर शेयर बाज़ार में जश्न का माहौल क्यों है?  

फूड डिलीवरी टेक्नालाजी कंपनी- ज़ोमाटो ने इन दिनों शेयर बाज़ार में हंगामा मचा रखा है. एक हंगामेदार आईपीओ के बाद शेयर बाज़ार में लिस्टिंग में उसके शेयर 65 फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ खुले. ज़ोमाटो के एक रूपये की कीमत के शेयर पहले तो आईपीओ के दौरान 76 रूपये प्रति शेयर की कीमत पर 40 गुना ज्यादा सबस्क्राइब हुए और अब शेयर बाज़ार में 125 से 140 रूपये के बीच बिक रहे हैं.

इस तरह ज़ोमाटो एक झटके में देश की कई बड़ी और प्रतिष्ठित ब्रिक-मोर्टार कंपनियों को बाज़ार पूंजीकरण के मामले में पीछे छोड़कर आज एक लाख करोड़ रूपये से ज्यादा की कंपनी बन चुकी है. यह इस मामले में एक चमत्कार है कि ज़ोमाटो खुद कुछ नहीं बनाती है. मतलब उसका अपना कोई रेस्तरां या किचन नहीं है. वह हम-आप जैसे शहरी उपभोक्ताओं को सिर्फ छोटे-बड़े और जानेमाने रेस्तरां से लजीज पकवानों को घर बैठे आर्डर करने और फिर उसे जल्दी से जल्दी आपके घर डिलीवर करने का प्लेटफार्म देती है.

इसके बावजूद ज़ोमाटो ऐसी “सफलता” हैरान करती है क्योंकि सिर्फ कुछ सालों की उम्रवाली इस कंपनी को फूड आर्डर और डिलीवरी के इस कारोबार में अब तक कोई मुनाफा नहीं हुआ है. उसे कब तक मुनाफा होगा, यह भी कोई नहीं जानता. इसके बावजूद उसके शेयरों के लिए मारामारी मची हुई है. इस कारण कई विश्लेषकों को लगता है कि ज़ोमाटो के शेयरों की ऐसी मारामारी और कुछ नहीं बल्कि बाज़ार और तेजड़ियों का “अतार्किक उत्साह” (Irrational Exuberance) है जो इन दिनों दुनिया भर में टेक्नालाजी कंपनियों की अतिरेकपूर्ण संभावनाओं का बाजा बजाने में लगे हुए हैं.

ज़ोमाटो के डिलीवरी कर्मचारी (फोटो सौजन्य: सीएनएन)

इसके साथ ही यह महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को सँभालने के नामपर विकसित और विकासशील देशों के केन्द्रीय बैकों की अति उदार मौद्रिक नीति के तहत दोनों हाथों से झोंकी गई भारी तरलता (ईजी मनी) का नतीजा भी है. इस पैसे को कहीं और उत्पादक सेक्टर में निवेश करने के बजाय शेयर बाज़ार में लगाकर एक तरह की सट्टेबाजी हो रही है और पैसे से पैसा बनाया जा रहा है. यह सिर्फ ज़ोमाटो के शेयर के साथ नहीं है. पिछले कुछ महीनों में कई अनजानी-जानी कम्पनियाँ आईपीओ लेकर आईं और प्राइमरी मार्किट और शेयर बाज़ार से भारी रकम उगाहने में कामयाब हो चुकी हैं. 

आश्चर्य नहीं कि खुद भारतीय शेयर बाज़ार भी इन दिनों सुर्ख़ियों में है. वह हर दिन-सप्ताह-महीने और ऊंचाई पर चढ़ने के नए रिकार्ड बना रहा है. मुंबई शेयर बाज़ार का संवेदी सूचकांक 53000 अंकों तक पहुँच चुका है. याद रहे कि मुंबई शेयर बाज़ार पिछले साल फ़रवरी तक 41000 अंकों तक पहुँचने के बाद कोरोना महामारी और उसके कारण लगे राष्ट्रीय लाकडाउन के दौरान मार्च-अप्रैल में औंधे मुंह गिरकर 28000 अंकों से नीचे आ गया था.

लेकिन उसके बाद शेयर बाज़ार के जानकारों को हैरान करते हुए पिछले एक साल से ब्रेकनेक स्पीड से लगातार ऊपर चढ़ रहा है.  पहले इस साल फ़रवरी में 50000 अंकों की मनोवैज्ञानिक रेखा पार करने के बाद चढ़ता हुआ अब 53000 अंकों के आसपास आ पहुंचा है. इस तरह 12-14 महीनों में शेयर बाज़ार ने 90 फीसदी से ज्यादा की छलांग लगाईं है. यह तब हो रहा है जब वास्तविक अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है. महामारी के कारण बीते वर्ष (20-21) जीडीपी की वृद्धि दर नकारात्मक (-) 7.3 फीसदी रही. इस वित्तीय वर्ष के पहली तिमाही में कोरोना की दूसरी और ज्यादा घातक लहर के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान कम करने पड़े हैं.     

इसके बावजूद शेयर बाज़ार में एक तरह का “मैनिया” छाया हुआ है जिसे बाज़ार के बड़े खिलाड़ियों खासकर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफएफआई) और तेजड़ियों और पिंक अखबारों/मीडिया ने मिलकर बनाया हुआ है. बाज़ार जिस ब्रेकनेक स्पीड से ऊपर चढ़ा या चढ़ाया गया है, उसके कारण एक ऐसा माहौल बन गया है जैसे इस महामारी में भी शेयर बाज़ार में सोना बरस रहा है. नतीजा यह कि छोटे और खुदरा निवेशक भी दौड़े चले आ रहे हैं कि एक का दस बनाने की इस पार्टी में कहीं पीछे न छूट जाएँ.

शेयर बाज़ार में तेजड़ियों का जलवा (फोटो सौजन्य: कलिंगा टीवी)

मतलब एक भेडचाल मची हुई है जिसमें तथ्यों और तर्कों की कोई नहीं सुन रहा है और कई बार शेयर बाज़ार की ऐसी चढ़ानों में हाथ जला चुके छोटे निवेशक एक बार फिर लालच में शेयर बाज़ार की बहती गंगा में हाथ धोने आ गए हैं. शेयर बाज़ार में यह पिछले कुछ वर्षों में एक आम ढर्रा बन गया है कि छोटे और खुदरा निवेशक शेयर बाज़ार में तब आते हैं जब वह काफी चढ़ गया हो और जब बुलबुला फूटता है और बाज़ार गिरता है तो जब वह काफी गिर जाता है तो घबराहट में नुकसान उठाकर भी बेचकर निकलने की कोशिश करते हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि चाहे वह ज़ोमाटो के शेयरों की मौजूदा कीमत हो या खुद शेयर बाज़ार का छलांगे मारता संवेदी सूचकांक- यह बुलबुला है जिसे लेकर बाज़ार के गंभीर विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों से लेकर खुद भारतीय रिजर्व बैंक तक भी चिंतित है जिसका दबी जुबान में जिक्र उसकी वार्षिक रिपोर्ट (20-21) में है. असल में, दुनिया भर में इन दिनों प्रमुख शेयर बाज़ारों में तेजड़ियों खासकर  का दबदबा है और बाज़ार आसमान छू रहे हैं. मुंबई शेयर बाज़ार भी इस ट्रेंड का अपवाद नहीं है. इसके पीछे वे विदेशी संस्थागत निवेशक हैं जिन्होंने वर्ष 20-21 में बाज़ार में शुद्ध 2.7 लाख करोड़ का निवेश किया है और अभी भी कर रहे हैं.

दूसरे, वे छोटे निवेशक हैं जो बैंकों की एफडी और निवेश के दूसरे सुरक्षित माध्यमों में अत्यधिक कम रिटर्न के कारण शेयर बाज़ार में निवेश के लिए मजबूर हो गए हैं. पिछले साल (20-21) में 1.43 करोड़ नए डीमैट एकाउंट खुले हैं जबकि वर्ष 19-20 में सिर्फ 50 लाख एकाउंट खुले थे.    

लेकिन जैसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहता है कि जो चीज ऊपर जाती है, वह नीचे भी आती है. ठीक उसी तरह शेयर बाज़ार का भी नियम है कि जो ‘अतार्किक उत्साह’ के साथ उछलता हुआ आसमान में पहुँच जाता है, वह फिर जमीन पर भी आता है. ऐसा अनेकों बार हो चुका है. दो दशक पहले फूटे डाटकाम बुलबुले की याद कौन भूला है?

देखने की बात सिर्फ यह है कि यह बुलबुला खुद फूटेगा या अमेरिका और भारत समेत कई देशों में मुद्रास्फीति की बढती दर से चिंतित केन्द्रीय बैकों की ‘इजी मनी’ की नीति के रोलबैक और ब्याज दरों में वृद्धि के बाद फूटेगा. इसलिए ज़ोमाटो पर दाँव लगाने और आर्डर करने से पहले देख लीजिये कि यह कहीं बुलबुला तो नहीं है?  

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आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार