ओमिक्रान: अमीर देशों के स्कैंडल का नतीजा?

दिसंबर-साल का आखिरी महीना! यही दिसंबर का महीना था जब सबसे पहले नोवेल कोरोना वायरस से संक्रमण की ख़बरें आनी शुरू हुई थीं. साल था 2019. देश था- चीन और शहर- वुहान! 

संयोग देखिए कि एक बार फिर दिसंबर का महीना और कोरोना वायरस का नया वैरिएंट- ओमिक्रान, दोनों साथ आए हैं. एक बार फिर दिन छोटे और रातें बड़ी और तनाव और आशंकाओं से भरी हुई हैं. ठंड बढ़ गई है लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इस साल सामान्य से कम ठण्ड पड़ेगी.

गरज यह कि सब कुछ अनिश्चित है.

ओमिक्रान: अनिश्चितता का नया नाम    

वायरस और अनिश्चितता दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं.

दिल्ली के आसमान पर स्माग की चादर तनी हुई है. शहर की साँसें धूल-धुएं के गैस चैंबर और कोरोना वायरस के नए वैरिएंट- ओमिक्रान और महामारी की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच डूब-उतरा रही हैं. 

दिल्ली ही क्यों, दुनिया भर की साँसे ओमिक्रान को लेकर अंटकी हुई हैं. वाशिंगटन से लेकर लंदन तक और केपटाउन से लेकर हांगकांग तक अफरातफरी मची हुई है. सरकारें घबराई हुई हैं. पैनिक और जल्दबाजी में उलटे-सीधे फैसले कर रही हैं. उन्हें दिखाना है कि वे कितनी एलर्ट हैं और वायरस को रोकने के लिए कितनी कटिबद्ध हैं. हालाँकि उन्हें पता है कि वे इन फैसलों से ओमिक्रान को रोक नहीं पाएंगी.

नतीजा सामने है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ओमिक्रान के मामले 30 से ज्यादा देशों में आ चुके हैं. यह ठीक है कि वायरस के इस नए वैरिएंट- ओमिक्रान के मामले मिलने के बारे में सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका ने रिपोर्ट किया है लेकिन कहना मुश्किल है कि ओमिक्रान के मामले सबसे पहले कहाँ पाए गए हैं और वह कितने देशों में फैला हुआ है?

दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति सिरिल राम्फोसा

इसके बावजूद अमेरिका और यूरोप के ज्यादातर विकसित पश्चिमी देशों ओमिक्रान संक्रमण को फैलने से रोकने के नामपर दक्षिण अफ्रीका और दूसरे दक्षिणी अफ्रीका देशों से आने-जानेवाली फ्लाईट पर रोक लगा दी. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा की यह शिकायत सही है कि उन्हें ईमानदारी और समय पर दुनिया को ओमिक्रान के खतरे से एलर्ट करने की सजा दी जा रही है.

विकसित पश्चिमी देशों का दोहरा रवैया देखिए कि वे खुद जरूरत से ज्यादा वैक्सीन दबाकर बैठे हैं. उसे गरीब देशों से बांटने के लिए तैयार नहीं हैं. यही नहीं, विकासशील देशों की डब्ल्यू.टी.ओ के तहत कोरोना वैक्सीन और दूसरी दवाओं के पेटेंट में छूट की मांग अब तक स्वीकार नहीं की गई है.

रिपोर्टों के मुताबिक, गरीब और पिछड़े अफ़्रीकी और दूसरे विकासशील देशों में लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगने के छह गुना ज्यादा तेजी से विकसित पश्चिमी देशों वैक्सीन का बूस्टर यानी तीसरा डोज लगाया जा रहा है. डब्ल्यू.एच.ओ के महानिदेशक डा. टेड्रास का कहना बिलकुल सही है कि यह एक स्कैंडल है.   

बीतता साल, वायरस, महामारी और कुछ सबक            

वैसे कुछ दिनों में कहने को यह साल भी बीत जाएगा- 21वीं सदी के तीसरे दशक का पहला साल! लेकिन पता नहीं क्यों, ऐसा लगता है जैसे यह साल ख़त्म होते हुए भी शायद खत्म नहीं होने जा रहा है. कारण, महामारी का यह साल कब और कहाँ से शुरू हुआ और कब और कहाँ खत्म होगा, किसी को पता नहीं है.

महामारी ने घड़ी की सुइयों को बेमानी बना दिया है. समय गुजर रहा है लेकिन बीत नहीं रहा.

यह साल पूरी दुनिया के लिए जिस कोरोना महामारी को अपने साथ लिए आया, उसे अगले साल के लिए भी छोड़े जा रहा है. इस साल भी दुनिया कोरोना महामारी के नए रूपों (वैरिएंटस) और महामारी की नई और जानलेवा लहरों के बीच उभ-चुभ करती रही. यूरोप के कई देश महामारी की चौथी और पांचवीं लहर की चपेट में हैं. 

कोरोना की चौथी/पांचवीं लहर की चपेट में यूरोप (सौजन्य: बीबीसी)

ताज़ा रिपोर्टों के मुताबिक, इन दो सालों में दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 26.39 करोड़ तक पहुँच गई है जिसमें कोई 52.45 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

इसमें कोई शक नहीं है कि यह भूमंडलीकृत दुनिया की पहली महामारी है जिसमें कोरोना वायरस सिर्फ कुछ दिनों और चंद सप्ताहों में चीन के शहर वुहान से निकलकर ट्रेन, बसों, कारों और हवाई जहाजों से चलता हुआ पूरी दुनिया में फ़ैल गया. न्यूयार्क टाइम्स की यह दिलचस्प रिपोर्ट बताती है कि वायरस कैसे चीन से निकलकर दुनिया भर में फ़ैल गया.

मुहावरा है न- पलक झपकते भर में! हालाँकि पक्के तौर पर कोई नहीं जानता कि कहाँ और कैसे लेकिन अनुमान है कि यह नोवेल कोरोना वायरस चीन के मछली बाज़ार (वेट मार्केट) में पहले किसी चमगादड़ या गंधबिलाव या पैन्गोलिन से या किसी लैब में उछलकर किसी आदमी में पहुंचा और वह बीमार हुआ. फिर पलक झपकते उससे किसी दूसरे-तीसरे-चौथे-सौवें आदमी में और फिर हवाई जहाज पर चढ़कर एशिया, अमेरिका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका सब जगहों पर पहुँच गया..

अंग्रेजी में कहते हैं न- रेस्ट इज हिस्ट्री!        

लेकिन इन दो सालों में यह साफ़ हो चुका है कि

·        यह महामारी जल्दी जानेवाली नहीं है. वायरस लगातार रूप बदल रहा है. डेल्टा के बाद उसका नया रूप है- ओमिक्रान! लेकिन यह आखिरी नहीं है. जब तक बड़े पैमाने पर संक्रमण जारी रहेगा, वायरस खुद को दोहराने यानी रिप्लिकेट करने की प्रक्रिया में गलतियाँ करेगा, नए वैरिएंट आते रहेंगे. इनमें कुछ पहले से ज्यादा संक्रमणकारी और खतरनाक होंगे और कुछ कम संक्रमणकारी और नुकसानदेह.  

·        पिछली महामारियों का इतिहास बताता है कि वे जल्दी नहीं गईं. वे कई सालों और दशकों तक कभी दुनिया इस देश और कभी उस देश में तबाही मचाती रहीं. उनकी कई-कई लहरें आती थीं.

लेकिन इतिहास यह भी बताता है कि महामारियां हमारी लापरवाहियों, मूर्खताओं, अहंकार और छुद्रताओं के कारण भी फैलती और तबाही मचाती थीं.

इतिहास का यह भी सबक है कि मानवता ने महामारियों पर विज्ञान और आपसी सहयोग से काबू पाया है.    

·        इस और पिछली महामारियों का सबसे बड़ा सबक है- “जब तक सभी सुरक्षित नहीं हैं, तब तक कोई सुरक्षित नहीं है.” विकसित देश वैक्सीन की जमाखोरी करके और सामान्य टीकाकरण के बाद बूस्टर डोज लेकर अपने को सुरक्षित मानने की खामख्याली पाले बैठे थे. लेकिन उसे वायरस के नए वैरिएंट- ओमिक्रान ने तगड़ा झटका दिया है. सारी कोशिशों के बाद भी ओमिक्रान संक्रमण के मामले अब तक 30 से ज्यादा देशों में मिल चुके हैं. वैक्सीन राष्ट्रवाद के खतरे सामने आ चुके हैं.      

·        आशंका यह भी है कि अगले कुछ सालों में यह महामारी (पैंडेमिक) बढ़ते संक्रमण और टीकाकरण से बनी इम्युनिटी के कारण धीरे-धीरे एक आम संक्रामक बीमारी (एंडेमिक) में बदल जाए और स्थाई रूप से हमारे बीच ही रहे.

महामारी (सौजन्य: नेचर)

·        लेकिन ज्यादा खतरनाक और चिंतित करनेवाली बात यह है कि यह महामारी आखिरी महामारी नहीं है. आनेवाले वर्षों और दशकों में, और शायद जल्दी-जल्दी, नई और घातक महामारियां आती रहेंगी. विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग, जंगलों के कटने, पर्यावरण क्षरण और इंसान और वन्य पशुओं/जीवों के एक-दूसरे से ज्यादा नजदीक आने से वायरसों के वन्य जीवों से उछलकर मनुष्यों को संक्रमित करने और इस तरह नई महामारियों के आने की आशंकाएं बढ़ती ही जा रही हैं.           

·        महामारियां समाज-राजनीति, अर्थतंत्र, संस्कृति के साथ-साथ हमारे रहन-सहन से निजी और कामकाजी-सार्वजनिक जीवन पर बहुत गहरा असर डालती हैं. उनके साथ बहुत कुछ बदल जाता है.

नए ‘नार्मल’ की ओर

हममें से जो लोग फिर से महामारी के पहले के सामान्य या “नार्मल” जीवन की उम्मीद लगाए बैठे हैं, उसके लिए बेचैन हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि वह शायद लौटनेवाला नहीं है. जैसाकि ‘अटलांटिक’ के विज्ञान रिपोर्टर एड योंग कहते हैं- ‘हम ‘नार्मल’ की वापसी के लिए उत्सुक हैं लेकिन यह ‘नार्मल’ ही हमें इस हालत में ले आया है.’ 

नया नार्मल (सौजन्य: जान हापकिंस यूनिवर्सिटी)

दुनिया को धीरे-धीरे नए “नार्मल” के लिए तैयार होना होगा. इसमें उसे ‘वृद्धि के लिए वृद्धि’ (Growth for growth sake) के दर्शन और आर्थिक विकास की उन प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करना होगा जो पर्यावरण (मिटटी, जंगल, हवा, नदियों और जीवों) की कीमत पर आ रही है.

वायरस भी इसी दुनिया के हिस्से हैं और वे कहीं नहीं जा रहे हैं. वे हमारे आसपास ही रहेंगे. कामू ने अपने मशहूर उपन्यास ‘प्लेग’ के आख़िरी पैराग्राफ में नायक रियो के हवाले से महामारियों को लेकर बहुत बारीक बात लिखी है-

“"...जब रियो ने शहर से उठती हुई ख़ुशी की आवाजों को सुना तो उसे याद आया कि ऐसी ख़ुशी हमेशा ख़तरे का कारण होती है. उसे वह बात मालूम थी जो खुशियाँ मनानेवाले नहीं जानते थे लेकिन क़िताबें पढ़कर जान सकते थे. वह बात यह थी कि प्लेग का कीटाणु न मरता है, न हमेशा के लिए लुप्त होता है. वह सालों तक फर्नीचर और कपडे की आलमारियों में छिपकर सोया रह सकता है; वह शयनगृहों, तहखानों, संदूकों और किताबों की आलमारियों में छिपकर उपयुक्त अवसर की ताक में रहता है; और शायद वह दिन फिर आएगा जब इंसानों का नाश करने और उन्हें ज्ञान देने के लिए वह फिर चूहों को उत्तेजित करके किसी सुखी शहर में मरने के लिए भेजेगा."             

क्या यह ओमिक्रान सुखी और खुशियों में डूबे लोगों को सबक सिखाने और सतर्क करने के लिए आया है?  

कुछ इस स्तंभ के बारे में

दुनिया जहान के बारे में एक फीडबैक यह है कि यह बहुत लम्बा होता है जिसे मोबाईल पर पढ़ना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए इस बार से इसे दो किस्तों में दे रहे हैं. यह पहली क़िस्त है. यह शुक्रवार की शाम को आएगी. इसकी दूसरी क़िस्त सोमवार को आएगी जिसमें दुनिया की राजनीतिक-आर्थिक हलचलों का राउंड-अप होगा.

इस दूसरी क़िस्त में बात होगी- होंडुरास में नई राष्ट्रपति, बारबाडोस के गणराज्य बनने, रूस-उक्रेन तनाव, लीबिया के अगले राष्ट्रपति चुनावों और तुर्की में गिरते लीरा की. इसके अलावा भी इसमें बहुत कुछ होगा.   

दूसरे, साल के आखिरी सप्ताहों में दुनिया जहान न सिर्फ इस साल की घटनाओं और ट्रेंड्स का लेखा-जोखा लेकर आएगा बल्कि अगले साल के ट्रेंड्स की बातें भी करेगा.

पढ़ते-पढ़ाते रहिये. अपनी फीडबैक भेजते रहिये. मेल आईडी है- apradhan28@gmail.com

शुक्रिया.      

Write a comment ...

आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार