सोनू कुमार के बहाने बिहार के किशोरों की बेचैनी और सपनों की कहानी

ह उस समय की बात है जब इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया नहीं थे. कहते हैं कि मशहूर अमेरिकी फिल्म निर्देशक और कलाकार एंडी वारहोल ने 1968 में एक भविष्यवाणी की थी कि भविष्य में सभी 15 मिनट के लिए विश्व प्रसिद्ध हो सकेंगे. यह एक मजाक था. किसे पता था कि यह एक दिन सच साबित हो जाएगा. लेकिन पहले रियलिटी टीवी और फिर इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की वायरल लीला का ऐसा जमाना आया जब कोई भी, कहीं भी और कभी भी 15 सेकेंड, 15 मिनट और 15 घंटे से लेकर 15 दिन के लिए विश्व प्रसिद्ध हो सकता है.

बिहार के नालंदा जिले के नीमाकोल गाँव के 12 साल के बच्चे सोनू कुमार को ही लीजिए जिसका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपने स्कूल की बदहाली, अपने पिता की शराब की लत और अपनी बेहतर पढ़ाई का इंतजाम करने को लेकर की गई गुहार का वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल है. इस छोटे से वीडियो क्लिप के वायरल होने के बाद से ‘पीपली लाइव’ की तर्ज पर सोनू कुमार के गाँव में टीवी न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों से लेकर यू-ट्यूबर्स और नेताओं का मजमा लगा हुआ है. सोनू सूद जैसी सेलिब्रिटीज से लेकर नेता और कोचिंग इंस्टीच्यूट उसकी आगे की पढ़ाई के लिए मदद करने का एलान कर रहे हैं.

उधर, पांचवीं में पढ़ रहे सोनू कुमार के इंटरव्यू के लिए चैनलों और सोशल मीडिया के रिपोर्टरों में खींचातानी मची हुई है. सोनू के वीडियो इंटरव्यू हर ओर छाए हुए हैं. अगर आप स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं और सोशल मीडिया पर आते-जाते हैं, आपके लिए सोनू कुमार के वायरल वीडियो अनदेखा करना मुश्किल है. आश्चर्य नहीं कि वह 10 दिनों से चैनलों और खासकर सोशल मीडिया की दुनिया का “स्टार” बना हुआ है. उसके गवईं भोलेपन में एक स्मार्टनेस, हिम्मत और आत्मविश्वास है जिसने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी उसकी बात पर ध्यान देने के लिए मजबूर कर दिया और बिहार के पूर्व मंत्री और राजद विधायक तेज प्रताप को अपने बेधड़क जवाब से लाजवाब कर दिया.

सोनू कुमार के इस अंदाज़ का कोई भी फैन हो जाएगा. उसके वीडियो वायरल होने के पीछे वही “गुदड़ी के लाल” वाली प्रेरक एस्पिरेशनल कहानी है जो थोड़ा चौंकाती है लेकिन साथ में, “फील गुड” का अहसास भी देती है. आखिर पांचवीं के छात्र से अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ी-बड़ी बातें करने की उम्मीद कौन करता है? वह भी बिहार के एक गाँव के बच्चे से. उसकी बातें हैरान करती हैं. उसमें हाजिरजवाबी और बेलौसपन के साथ बड़बोलापन भी है, उसकी बिहारी हिंदी में तेवर और तुर्शी है, अंदाज़ में कुछ ड्रामा भी है और साथ में, अच्छे स्कूल में पढ़ने और आईएएस बनने की आकांक्षा और सपने भी हैं.

इन सबके काकटेल से एक हैरान करनेवाला कौतुक बनता है जिसे न्यूज चैनल और खासकर सोशल मीडिया पर खूब भुनाया जा रहा है. चाहे-अनचाहे सोनू कुमार खुद भी इस कौतुक और ड्रामे के साथ मिलनेवाले लाईम-लाईट का बाल-सुलभ उत्साह के साथ मजा भी ले रहा है. लेकिन इधर यू-ट्यूबर्स और चैनलों के उन पत्रकारों के ड्रामे के अतिरेक से पीड़ित और परेशान भी हो रहा है जो उसकी तात्कालिक लोकप्रियता यानी वायरल स्टेटस के रत्ती-रत्ती को भुनाने के लिए उसे घेरे हुए हैं. उसे अंदाज़ा है कि वह एक सोशल मीडिया स्टार बन चुका है जिसे लोग देख-सुन रहे हैं. वह खुद भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता रहा है. उसे सोशल मीडिया की दुनिया के वायरल स्टार होने से मिलनेवाले “स्टारडम” का बखूबी अंदाज़ा है.         

सोनू कुमार भाजपा नेता सुशील मोदी के साथ

यह ठीक है कि इस कौतुक और ड्रामे की उम्र ज्यादा दिनों की नहीं है और सोशल मीडिया को जल्दी ही कोई दूसरा-तीसरा वायरल स्टार मिल जाएगा. असल में, जब सोशल मीडिया पर 15 सेकेंड के फ़ेम का दौर चल रहा है, उसमें सोनू कुमार की कहानी कोई 10 दिनों तक चल गई, यह अपने आप में सोनू की कहानी की ताकत बताती है. इस कहानी में कौतुक और ड्रामे के अलावा सोनू की हिम्मत, आकांक्षाएं, सपने और संघर्ष भी है. वह अपने गाँव के सरकारी स्कूल की खस्ताहाल हालत से नाराज है, अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहता है और आईएसएस बनना चाहता है. वह अपने पिता की शराब की लत से भी परेशान है. वह इस सबकी शिकायत मुख्यमंत्री से करने भी घबराता नहीं है.

लेकिन पिछड़े और हाशिए पर पड़े गाँव-घर से लेकर स्कूल तक हर जगह प्रतिकूल और मुश्किल स्थितियों के बीच सोनू कुमार को यह हिम्मत, आकांक्षा और सपने कहाँ से मिल रहे हैं? असल में, बिहार के एक पिछड़े गाँव में जहाँ फूस की छत के नीचे चलनेवाले सरकारी स्कूल में पढ़ाई भगवान भरोसे है, सोनू कुमार जैसे बच्चों और किशोरों की आकांक्षाओं के लिए सस्ता स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया बाहरी एस्पिरेशनल दुनिया की वे खिड़कियाँ और वर्चुअल स्कूल हैं जहाँ वे छोटे-बड़े सपने देख रहे हैं, जो उनके लिए मनोरंजन से लेकर जानकारियों तक का इकलौता माध्यम बन गया है जहाँ वे खेल-खेल में नई-नई चीजें सीख रहे हैं- कुछ कच्ची, कुछ पक्की जिसमें उनकी क्रिएटिविटी फल-फूल रही है और उनमें से बहुतेरे अपनी उम्र से ज्यादा बड़े बन जा रहे हैं. यह स्मार्टफोन उन्हें एस्पिरेशनल बना रहा है, उन्हें सपने और उम्मीदें दे रहा है.   

हैरानी की बात नहीं है कि सोनू कुमार ने अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर जो पैसे कमाए, उससे सबसे पहले स्मार्टफोन ख़रीदा. लेकिन मुश्किल यह है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट की वर्चुअल चमचमाती-सपनीली दुनिया से बाहर सोनू कुमार के नीमाकोल गाँव की वास्तविक दुनिया का यथार्थ बहुत बदरंग और कठोर है. बिहार की सरकारी स्कूली शिक्षा व्यवस्था की बदहाली किसी से छुपी नहीं है जिसमें एक तो सपने देखने-दिखाने की गुंजाइश नहीं है और जहाँ सपने फलते-फूलते नहीं बल्कि असमय मर जाते हैं. भले ही वह जिला और गाँव राज्य के मुख्यमंत्री का ही क्यों न हो.

सोनू कुमार बाहुबली नेता पप्पू यादव के साथ

बिहार के स्कूलों की बदहाल स्थिति और उसमें सोनू कुमार जैसे लाखों प्रतिभाशाली बच्चों के मरते सपनों का अंदाज़ा केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) की ताज़ा रिपोर्ट से मिलता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के दौरान बिहार के तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं में पढ़ाए जानेवाले लगभग हर विषय में छात्रों के प्रदर्शन में 2017 में कराए गए पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि बिहार में स्कूली शिक्षा एक गहरे शैक्षणिक संकट से गुजर रही है.

बिहार और मोटे तौर पर हिंदी पट्टी के सभी राज्यों और उनके गांवों में यही वह यथार्थ है जिससे सोनू कुमार जैसे लाखों बच्चों को रोज टकराना पड़ता है. लेकिन गाँव-गाँव तक पहुँच रहे स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये उनमें जो सपने और आकांक्षाएं पैदा हो रही हैं, उसकी जब वास्तविकता से टकराहट हो रही है तो वह तनाव और बेचैनी पैदा कर रही है. सोनू कुमार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गुहार में उस बेचैनी को पढ़ा और महसूस किया जा सकता है. उसकी इस बेचैन और हिम्मती गुहार के वीडियो के वायरल होने में उन किशोरों, युवाओं और अभिभावकों की बेचैनी को पढ़ा जा सकता है जो उसे शेयर कर रहे हैं और अपना फ्रस्ट्रेशन और मोटिवेशन दोनों एक साथ जाहिर कर रहे हैं.   

अफ़सोस यह कि चार दिन की चांदनी, फिर अँधेरी रात की तरह सोशल मीडिया की दुनिया में सोनू कुमार के वायरल वीडियो में गुंथे सपनों, आकांक्षाओं और बेचैनी की उम्र 15 सेकेण्ड से लेकर 15 दिन तक भर है. कोई नया वायरल वीडियो आएगा और लोग सोनू कुमार को और उससे अधिक बिहार के गांवों में स्कूली शिक्षा की बदहाली को भूल जायेंगे. यह ठीक है कि इस वायरल वीडियो से एक सोनू कुमार की मदद में कई हाथ आगे बढ़ आएंगे लेकिन दूसरे लाखों सोनू कुमारों के सपनों का ऐसा भाग्य कहाँ?

(यह लेख कोई एक-डेढ़ महीने पहले "नवभारत टाइम्स" में छपा था. लेकिन एक ऐसे दौर में जब लोग सिर्फ तीन दिन पहले तक छपी या वायरल हुई वीडियो देख और पढ़ रहे हैं, सोनू कुमार की कहानी भी सुर्ख़ियों से गायब हो चुकी है.)

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आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार