छप्परफाड़ मुनाफ़ा: जितनी देर में आप यह लेख पढेंगे, रिलायंस को 1.3 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफ़ा हो चुका होगा

अरबपति मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (आरआईएल) की कंपनियों ने चालू वित्तीय वर्ष के पहले तीन महीनों (अप्रैल-जून, 2022) में कुल 17995 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमाया है. यह शुद्ध मुनाफा पिछले साल की पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2021) की तुलना में 46 फीसदी से ज्यादा है. हालाँकि रिलायंस के इस छप्परफाड़ मुनाफ़े में टेलीकाम और रिटेल कारोबार का उल्लेखनीय योगदान है लेकिन खुद मुकेश अंबानी के मुताबिक, “रिलायंस के तेल और रसायन के कारोबार ने अब तक सबसे सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है.”

आइये, रिलायंस के इस छप्परफाड़ मुनाफ़े को थोड़ा और क़रीब से समझने की कोशिश करते हैं:

-    रिलायंस को बीती तिमाही में हर महीने औसतन 5998.33 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ.

-    इस तरह रिलायंस ने बीते तीन महीनों में हर दिन 197.74 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा कमाया.

-    इसका अर्थ यह हुआ कि रिलायंस को इन तीन महीनों में हर घंटे 8.23 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ. इसका मतलब यह भी है कि जितने समय में यह लेख पूरा हुआ, उतने समय में रिलायंस ने 16.46 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफा कूत लिया.    

-    और इसका अर्थ यह भी है कि अगले दस मिनट में जब तक आप इस लेख को पढ़कर उठेंगे, रिलायंस 1.37 करोड़ रूपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमा चुकी होगी. कारण यह कि इन तीन महीनों में रिलायंस ने हर मिनट कोई 13.7 लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा कमाया है.

ये वही तीन महीने हैं जब पेट्रोलियम और दूसरी जरूरी वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों और सातवें आसमान पर पहुँच गई महंगाई की मार से गरीब और आम मध्यवर्गीय परिवार मुश्किल में थे. यह वही तिमाही है जब जून में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.8 फीसदी पहुँच गई और रोजगार में 1.3 करोड़ की कमी दर्ज की गई. कृषि क्षेत्र के अलावा 25 लाख वेतनभोगी नौकरियां घट गईं.

लेकिन इससे रिलायंस के छप्परफाड़ मुनाफ़े पर कोई असर पड़ा. उलटे रिलायंस के तेल और रसायन कारोबार के लिए यह तिमाही उसके अब तक के इतिहास की सबसे शानदार प्रदर्शनवाली तिमाही रही.     

रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड

आइये, अब रिलायंस के तीन महीने के शुद्ध मुनाफ़े को दूसरी तरह से समझने की कोशिश करते हैं:

-    रिलायंस के सिर्फ तीन महीनों (अप्रैल से जून, 22) का शुद्ध मुनाफा 17995 करोड़ रूपये रहा. इसकी तुलना इस तथ्य से कीजिए कि भारत सरकार के केन्द्रीय बजट में पूरे साल (22-23) के लिए सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय का कुल बजट 11922 करोड़ रूपये का है. इसी तरह स्किल विकास और उद्यमिता मंत्रालय को 2999 करोड़ रूपये, आदिवासी मामलों के मंत्रालय को 8451 करोड़ रूपये, युवा मामलों और खेल मंत्रालय को 3062 करोड़ रूपये, बाल और महिला विकास मंत्रालय को 25172 करोड़ रूपये और श्रम और रोजगार मंत्रालय को पूरे साल के लिए 16893 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं.

-    इसी तरह वन, पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज मंत्रालय का इस साल के लिए कुल बजट है- 3030 करोड़ रूपये जिसकी तुलना में रिलायंस का सिर्फ तीन महीने का शुद्ध मुनाफा 5 गुने से भी ज्यादा है.

आप सोच रहे होंगे कि रिलायंस के तिमाही शुद्ध मुनाफ़े और भारत सरकार के वन, पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के सालाना बजट की तुलना का क्या तुक है?

ठहरिए, आपको इस सप्ताह गार्डियन अख़बार में छपी एक रिपोर्ट के कुछ चौंकानेवाले आंकड़ों से रूबरू करते हैं जो शायद इन दोनों के संबंधों पर कुछ रौशनी डाल डाल सकते हैं:

-    वैश्विक स्तर पर तेल और गैस उद्योग को पिछले 50 साल से हर दिन (जी, आपने बिलकुल सही पढ़ा, हर दिन) 2.8 अरब डालर का शुद्ध मुनाफा हो रहा है. पिछले 50 साल में तेल और गैस कंपनियों के साथ तेल उत्पादक देशों को अब तक कुल 52 खरब डालर का शुद्ध मुनाफा हुआ है. इस अकूत मुनाफ़े की सबसे बड़ी वजह तेल कंपनियों और तेल उत्पादक देशों का वह कार्टेल है जो कृत्रिम तरीके से आपूर्ति रोककर या कम करके कीमतों को ऊँचा बनाए रखता है.

जीवाश्म ईंधन का जलवा और क्लाइमेट चेंज का कहर (साभार: क्लाइमेट चेंज न्यूज)

-    अख़बार ने एंटवप विश्वविद्यालय के प्रो. एवियल वरब्रुगेन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि इन 50 सालों में तेल और गैस कंपनियों ने के इस छप्परफाड़ मुनाफ़े के कारण उनके पास दुनिया भर के “सभी राजनेताओं और व्यवस्थाओं को ख़रीदने” की असीमित ताकत आ गई है जिसके कारण वे ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और क्लाइमेट चेंज पर कोई कार्रवाई को धीमी करने में कामयाब हो जा रहे हैं.

दोहराने की जरूरत नहीं है कि वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी वजहों में से एक है- जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोलियम और कोयला आदि का लगातार बढ़ता इस्तेमाल.

एक ऐसे समय में जब पूरा यूरोप और अमेरिका भीषण गर्मी की चपेट में है. हीटवेव हर दिन नए रिकार्ड बना रही है. जंगलों में लगी आग लगातार फ़ैल और विकराल हो रही है. दुनिया के अनेक देश खासकर अफ्रीका में सूखे का सामना कर रहे हैं, वहीँ एशिया और आस्ट्रेलिया में भारी बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त है. इस सबसे हर दिन साफ़ होता जा रहा है कि दुनिया क्लाइमेट इमरजेंसी के बीच “सामूहिक आत्महत्या” की ओर बढ़ रही है.

इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिंग से निपटने और क्लाइमेट चेंज पर बड़ी और ठोस कार्रवाई करने के बजाय सिर्फ गाल क्यों बजाया जा रहा है, यह समझने के लिए आपको तेल और गैस कंपनियों की वैश्विक और घरेलू आर्थिक और राजनीतिक ताकत को समझना पड़ेगा. उनके छप्परफाड़ मुनाफे के राज और उससे निकलनेवाली असीमित राजनीतिक और आर्थिक ताकत को पहचानना पड़ेगा.

तेल रिफाइनरी (साभार: इनसाइड क्लाइमेट न्यूज)

यह जानना पड़ेगा कि दुनिया भर में तेल और गैस कंपनियों के छप्परफाड़ (विंडफाल) मुनाफ़े पर विंडफाल टैक्स लगाने की मांग पर राजनेताओं के हाथ-पैर क्यों कांपने लगते हैं?

याद रहे कि रिलायंस भी मूलतः एक तेल और गैस कंपनी है और उसके छप्परफाड़ मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा तेल-गैस और रसायन के कारोबार से आता है.

यही नहीं, रिलायंस बाज़ार पूंजीकरण के लिहाज से देश की सबसे बड़ी कंपनी है जिसकी मार्केट वैल्यू 16.93 लाख करोड़ रूपये है.  

अब और भी कुछ कहने को बचा रह जाता है क्या?

और हाँ, आपके इस लेख को पढ़कर खत्म करते-करते रिलायंस को 1.37 करोड़ का शुद्ध मुनाफा हो चुका है.  

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आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार