भारत में गर्मी क्यों और कैसे जानलेवा हो रही है? रिकार्डतोड़ गर्मी के क्या हैं मायने?

भारत के लिए भारी नुकसान का कारण बन रही है रिकार्डतोड़ गर्मी: अगले दस सालों में भारत दुनिया के उन कुछ देशों में होगा जहाँ भीषण गर्मी जानलेवा हो जायेगी : भारत में भीषण हीटवेव के कारण 2030 तक जीडीपी का लगभग 150 से 250 अरब डालर तक जाया हो सकता है

यह समय मानसून और बारिश का है लेकिन दिल्ली सहित पूरा उत्तर-पश्चिम भारत इस समय भारी गर्मी और लू के थपेड़ों से हलकान है. दिल्ली में बीती एक जुलाई को पारा 43.1 डिग्री तक पहुँच गया जो जुलाई महीने में पिछले 9 साल में गर्मी का नया रिकार्ड है. राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू, चंडीगढ़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश जगहों पर तापमान 40 से 44 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच चल रहा है जो इस मौसम के सामान्य तापमान से 4 से 6 डिग्री सेंटीग्रेड तक अधिक है.

मौसम विज्ञान में इसे हीटवेब की स्थिति कहते हैं जब गर्मी या लू की लहर के कारण किसी इलाके का तापमान उस मौसम के सामान्य तापमान से 4 डिग्री सेंटीग्रेड ऊपर चला जाए और जब तापमान सामान्य से 6.5 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे अधिक चला जाए तो उसे सीवीयर हीटवेब यानी गंभीर या भीषण गर्मी के हालात कहते हैं. इस समय दिल्ली समेत उत्तर-पश्चिम भारत के कई इलाकों में मानसून के आने में देरी और पाकिस्तान-राजस्थान से आनेवाली गर्म हवाओं, आसमान में बादलों के न होने के कारण सीवियर हीटवेब की स्थिति बन गई है.

इन दिनों दिल्ली और उत्तर-पश्चिम भारत ही नहीं, दुनिया के कई और देश रिकार्डतोड़ हीटवेव का सामना कर रहे हैं. अमेरिका में वाशिंगटन और ओरेगन जैसे राज्यों से लेकर कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया जैसे राज्य अब तक सबसे भीषण गर्मी और हीटवेव से गुजर रहे हैं जिसमें सकदों लोगों की मौत हो गई है. इसी तरह यूरोप खासकर पूर्वी और मध्य यूरोप के कई देशों के अलावा रूस, जर्मनी, इटली, फिनलैंड और यहाँ तक कि सबसे ठन्डे इलाकों में से एक माने जानेवाले साइबेरिया में भी हीटवेव चल रही है.        

साफ़ है कि ग्लोबल वार्मिंग और उसके कारण मौसम में बदलाव के असर से कोई अछूता नहीं है. आश्चर्य नहीं कि राजधानी दिल्ली समेत पूरा उत्तर पश्चिम भारत गर्मी में तप रहा है. तेज गर्म हवा लोगों को झुलसा रही है. यही नहीं, लू के साथ कई इलाकों में बढ़ी हुई उमस या आर्द्रता (ह्यूमिडीटी) के कारण पारा भले 42 से 44 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच है लेकिन आपको महसूस ऐसा हो रहा होगा जैसे तापमान बर्दाश्त से बाहर 46-47 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच गया है.

लू, उमस, पसीने और तीखी धूप के बीच ऐसा महसूस होता है जैसे आपको गर्म तवे पर भुना जा रहा हो या आपको गर्म भाप में सिझाया/पकाया जा रहा हो. इसे “हीट इंडेक्स” कहते हैं जो आजकल ज्यादातर स्मार्टफोन्स में वेदर या मौसम/तापमान बतानेवाले एप्प में भी देखा जा सकता है जो हवा में आर्द्रता और गर्मी के आधार पर बताता है कि तापमान 36 डिग्री सेंटीग्रेड होने के बावजूद 42 डिग्री सेंटीग्रेड की तरह महसूस हो रहा है.

इसी तरह तापमान मापने का एक और तरीका “वेट बल्ब” तापमान है. वैज्ञानिक हवा में गर्मी और उमस के मेल से बने “वेट बल्ब” तापमान को लेकर ज्यादा चिंतित हैं क्योंकि वह जानलेवा हो सकती है. “वेट बल्ब” तापमान वह न्यूनतम तापमान है जिसमें कोई चीज सतह से वाष्पीकरण के जरिये ठंडी होती है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि सूखी गर्मी में एक स्वस्थ आदमी या औरत अपने शरीर के सामान्य तापमान- 37 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक का तापमान बर्दाश्त कर सकते हैं क्योंकि उनका शरीर पसीने के जरिये खुद को ठंडा कर लेता है.

लेकिन “वेट बल्ब” तापमान में किसी आदमी के लिए 32 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे अधिक का तापमान बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हवा में बढ़ी आर्द्रता के कारण शरीर के लिए पसीने से खुद को ठंडा करना मुश्किल हो जाता है. माना जाता है कि 32 डिग्री “वेट बल्ब” तापमान में शारीरिक श्रम करना जानलेवा हो सकता है और 35 डिग्री सेंटीग्रेड “वेट बल्ब” तापमान में जान को खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. इस तापमान में अगर आप छाया में भी हैं तो आप अधिक से अधिक पांच घंटे तक बचे रह सकते हैं और फिर “हीट स्ट्रोक” के शिकार हो सकते हैं और आपकी जान को खतरा हो सकता है.

पिछले साल नवंबर में जारी मकिंजी ग्लोबल इंस्टीच्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हालिया गंभीर से गंभीर हीटवेव के दौरान शायद ही “वेट बल्ब” तापमान 32 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर गया हो. लेकिन यह स्थिति अब बदल रही है. रिपोर्ट बताती है कि मौसम वैज्ञानिक अध्ययन यह संकेत कर रहे हैं कि वर्ष 2030 तक देश के सबसे गर्म इलाकों में भीषण हीटवेव के दौरान “वेट बल्ब” तापमान 34 डिग्री सेंटीग्रेड की जानलेवा सीमा तक पहुँच सकता है.

भीषण गर्मी के कारण बाहर काम करना मुश्किल होता जाएगा (साभार: न्यूयार्क पोस्ट)

रिपोर्ट के मुताबिक, ज्ञात इतिहास में पृथ्वी पर इतना अधिक तापमान कुछ ही मौकों पर रिकार्ड किया गया है जिसमें 2015 में फारस की खाड़ी के तटीय इलाके में “वेट बल्ब” तापमान 34.6 डिग्री सेंटीग्रेड और फिर उसी इलाके में 35.4 डिग्री सेंटीग्रेड रिकार्ड किया गया है.

मकिंजी की इस रिपोर्ट के मुताबिक, वृद्धों और बीमार लोगों के लिए 34 डिग्री सेंटीग्रेड “वेट बल्ब” तापमान घातक और जानलेवा हो सकता है. यही नहीं, देश के अनेकों शहरों के उन इलाकों में जहाँ पेड़-पौधे नहीं हैं, कांक्रीट के जंगल हैं, घनी आबादी है और तापमान रेडियेट करता है, वहां “वेट बल्ब” तापमान “अर्बन हीट आइलैंड” प्रभाव के कारण 35 डिग्री सेंटीग्रेड की उस सीमा तक पहुँच सकता है जहाँ वह स्वस्थ लोगों के लिए भी जान का खतरा पैदा कर सकता है.

यह रिपोर्ट बताती है कि ग्रीन हाउस गैसों और दूसरे कारणों से मौसम में बदलाव का मौजूदा सिलसिला जारी रहा तो वर्ष 2050 तक हालात ऐसे हो जायेंगे कि उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के कई इलाकों में हीटवेव के दौरान “वेट बल्ब” तापमान 35 डिग्री सेटीग्रेड तक पहुँचने की आशंका 80 फीसदी तक बढ़ जायेगी.                         

इस चेतावनी पर गौर करने की जरूरत है क्योंकि इनदिनों भारत और दुनिया के और कई देश जिस भीषण गर्मी और हीटवेव में भुन रहे हैं, वह स्थिति नई नहीं है. पिछले कुछ सालों में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में यह एक आम परिघटना बनती जा रही है. विश्व मौसम संगठन के मुताबिक, पिछला साल, वर्ष 2020 ज्ञात इतिहास के अब तक के सबसे गर्म तीन सालों में एक था जब अत्यधिक गर्मी ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए.

जंगलों की आग खतरनाक संकेत है

सबसे चौंकानेवाला तथ्य यह है कि ज्ञात इतिहास के अब तक के सबसे गर्म छह साल वर्ष 2015 के बाद रहे हैं जिनमें वर्ष 2016, 2019 और 2020 टाप तीन सालों में हैं. यही नहीं, वर्ष 2011 से 2020 का बीता दशक दुनिया के लिए अब तक का सबसे गर्म दशक साबित हुआ है.

इसके भयावह नतीजे भी सबके सामने हैं. आस्ट्रेलिया में 2019-20 में जंगल की आग हो या पश्चिमी अमेरिका खासकर कैलिफोर्निया का सूखा और जंगलों की आग या फिर यूरोप में हीटवेव के बढ़ते मामलों में होनेवाली सैकड़ों-हजारों मौतें हों- भीषण गर्मी और हीटवेव का कहर बढ़ता जा रहा है. लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 में हीटवेव के कारण 65 वर्ष से अधिक उम्र के तीन लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी जिसमें सबसे ज्यादा लोग भारत और चीन के थे.

लेकिन यह सिर्फ ट्रेलर है. रिपोर्टों के मुताबिक, आनेवाले वर्षों और दशकों में भीषण गर्मी, लू और हीटवेव के कुल दिन और मामले बढ़ते ही जायेंगे. दक्षिण एशिया खासकर भारत उन इलाकों में से है जहाँ अगले दो से तीन दशकों में भीषण गर्मी और उसके कारण हीटवेव से भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वैज्ञानिकों की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1980-99 के बीच हीटवेव के मामलों में लगभग 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई जबकि वर्ष 2000 से 2019 के बीच हीटवेव के मामले 24 प्रतिशत तक बढ़ गए. यही नहीं, इन हीटवेव में मौतों की संख्या में 1980 से 99 के बीच 19.46 फीसदी और 2000 से 2019 के बीच 23.54 फीसदी की बढ़ोत्तरी रिकार्ड की गई है.                          

इस सिलसिले में मकिंजी ग्लोबल इंस्टीच्यूट की रिपोर्ट चेताती है कि अगले दस सालों के अन्दर भारत दुनिया के उन पहले देशों में होगा जहाँ भीषण गर्मी उस जानलेवा हद तक पहुँच जायेगी जिसमें छाया में बैठे एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी वह बर्दाश्त से बाहर हो जायेगी और उसकी जान के लिए संकट पैदा हो सकता है. यही नहीं, इसका गंभीर असर श्रमिकों की उत्पादकता और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में खुले में काम का योगदान अभी भी बहुत ज्यादा है.

गर्मी का कामगारों पर होगा सबसे बुरा असर

मकिंजी की यह रिपोर्ट डरानेवाली है. यह बताती है कि अगर तापमान में बढ़ोत्तरी की यह प्रक्रिया जारी रही तो इसकी आशंका 40 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी कि देश में वर्ष 2030 तक शहरी इलाकों कोई 16 से 20 करोड़ लोगों को एक दशक में कम से एक बार जानलेवा हीटवेव का सामना करना पड़ सकता है जिसमें लोगों की जान को भी गंभीर खतरा होगा. यही नहीं, इस बढ़ती गर्मी के कारण साल में उन दिनों की संख्या 15 फीसदी तक बढ़ जायेगी जिसमें दिन के समय बाहर खुले में काम करना संभव नहीं होगा.

यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी बाहर गर्मी में काम करने पर निर्भर है. रिपोर्ट वर्ष 2017 के जीडीपी के आंकड़ों का हवाला देकर बताती है कि देश की जीडीपी का 50 प्रतिशत बाहर-खुले और गर्मी के बीच काम से आता है, सालाना जीडीपी वृद्धि में उसका योगदान 30 फीसदी तक है और कोई 75 फीसदी श्रम शक्ति (38 करोड़ मजदूर) ऐसे काम में लगी हुई है.

मकिंजी की रिपोर्ट के मुताबिक, भीषण गर्मी के कारण कार्यदिवसों के नुकसान के कारण वर्ष 2030 तक जीडीपी का 2.5 से 4.5 फीसदी जाया हो सकता है जो लगभग 150 से 250 अरब डालर तक हो सकता है. यूएनडीपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ती गर्मी के कारण भारत को वर्ष 2025 तक सालाना कार्यदिवसों का 3.6 फीसदी तक गंवाना पड़ सकता है.  

बर्दार्ष से बाहर हो रही है गर्मी

इसी तरह विश्व श्रम संगठन (आई.एल.ओ) की वर्ष 2019 में जारी रिपोर्ट “वर्किंग आन अ वार्मर प्लैनेट” भी चेताती है कि भीषण गर्मी और हीटवेव के कारण वर्ष 2030 तक भारत 3.4 करोड़ कुलवक्ती रोजगार गँवा सकता है जिसका सबसे ज्यादा असर खेती और कंस्ट्रक्शन उद्योग पर पड़ेगा. पिछले साल जारी लांसेट जर्नल की रिपोर्ट “काउंटडाउन रिपोर्ट आन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज” के मुताबिक, भीषण गर्मी के कारण वर्ष 2019 में भारत कुल 118.3 अरब काम के घंटे गँवा बैठा जोकि प्रति व्यक्ति 111.2 काम के घंटे का नुकसान बैठता है. 

साफ़ है कि देश एक ऐसे खतरे के मुहाने पर पर पहुँच रहा है जिसके बारे में साल में सिर्फ कुछ दिनों चर्चा होती है जब गर्मी अपने उफान पर होती है और हीटवेव से जान हलकान रहती है. उसके बाद फिर वही रोजमर्रा के कारोबार शुरू हो जाते हैं गोया कुछ हुआ ही नहीं हो. लेकिन 2015 से खतरे की घंटी बज रही है.

अगर जल्दी देश ने चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली जैसे अनेकों शहरों को भीषण गर्मी और हीटवेव से बचाने के लिए शहरी योजना में बदलाव, कांक्रीट के जंगल की जगह हरित क्षेत्र पर जोर, मकानों को हीट प्रतिरोधी और गर्मियों के लिए ठन्डे सामुदायिक शेल्टर बनाने जैसे उपाय नहीं किए तो लाखों लोगों की जिंदगी और अरबों रूपयों की जीडीपी दांव पर होगी.            

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आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार